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कविता

जड़ें

स्नेहमयी चौधरी


अंदर कभी समुद्र-मंथन चलता है,
कभी ज्वालामुखी फूटता है,
कभी दावाग्नि लगती है,
कभी बर्फ जमती है,
कभी बरसात होती है,
कभी आँधी-तूफान चलता है,
सब कुछ बाहर से क्यों नहीं गुजर जाता?

जड़ें तो न हिलतीं
पेड़ की।


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